मोहित मिश्रा
अमूमन बिखर जाता हूं
जब तिनका-तिनका टूटता है कहीं
किसी चूहा दौड़ में
जीतकर पनीर का कोई टुकड़ा-
अपने भाग्य पर इठलाता हूं,
कभी-कभार चुरा लेता हूं-
किसी भूखे की रोटी, जान-बूझकर
और किसी कुत्ते की तरह
डंडे के आगे दुम हिलाता रहता हूं,
देखकर सामने होते किसी
बलात् कार्य को भी-
मैं नि:शंक सो जाता हूं,
या फिर लिखकर कोई कविता
अपना खोखला आक्रोश
या दो बूंद घड़ियाली आंसू
उकेर लेता हूं,
............
मैं, हां मैं...
भारत का मध्य वर्गीय कहलाता हूं !
फिर भी अारक्षण चाहिए
9 years ago
5 Comments:
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