Sunday, June 15, 2008

मध्यवर्गीय












मोहित
मिश्रा


अमूमन बिखर जाता हूं
जब तिनका-तिनका टूटता है कहीं
किसी चूहा दौड़ में
जीतकर पनीर का कोई टुकड़ा-
अपने भाग्य पर इठलाता हूं,
कभी-कभार चुरा लेता हूं-
किसी भूखे की रोटी, जान-बूझकर
और किसी कुत्ते की तरह
डंडे के आगे दुम हिलाता रहता हूं,
देखकर सामने होते किसी
बलात् कार्य को भी-
मैं नि:शंक सो जाता हूं,
या फिर लिखकर कोई कविता
अपना खोखला आक्रोश
या दो बूंद घड़ियाली आंसू
उकेर लेता हूं,
............
मैं, हां मैं...
भारत का मध्य वर्गीय कहलाता हूं !

5 Comments:

Anonymous said...

And also we ensure that when we enter in this specific blog site we see to it that the topic was cool to discuss and not a boring one.

Anonymous said...

Well, all I can say is. Im hungry.

Anonymous said...

I agree with you about these. Well someday Ill create a blog to compete you! lolz.

Anonymous said...

Considering the fact that it could be more accurate in giving informations.

Anonymous said...

Baw, kasagad-sagad sa iya ubra blog!