Monday, December 29, 2014

अब चूंकि इस परंपरा का जोर है कि सत्ता का सुख आपकी गुणवत्ता पर नहीं बल्कि आपकी सजातीय संख्या पर निर्भर करता है,तो शातिरों के द्वारा धर्म के साथ छेडछाड प्रमुख मुद्दा रहेगा ही, चाहे वह जिन्ना हों या आज के आजम या ईसाई मिशनरियाँ या फिर खुद को हिन्दूओ का संरक्षक बताकर हिन्दूओ की ही लड़कियों पर भद्दी टिप्पणी करने वाले हिन्दू संगठनो के सदस्य हों॥ 
हमें कुछ ज्यादा नहीं बस इस परंपरा को ही बदलना होगा आखिर औवेशी से लेकर तोगडिया तक को जनाधार भी तो हम ही देते हैं।। भारत का विकास सिर्फ भारतीय कर सकते हैं धर्म के कुत्सित ठेकादार नहीं।स्पष्ट है आज राजनैतिक क्रांति की नही सामाजिक क्रांति की ज्यादा आवश्यकता है॥

धर्म की राजनीति सिर्फ संघ और उसके अनुसांगिक संघठन ही नहीं करते,बल्कि ईसाई और मुस्लिम के स्वघोषित ठेकेदार भी करते हैं...और ये ठेकेदार भी उसी तरह कुटिल और सस्ती लोकप्रियता के भूखे हैं जैसे अन्य कलयुगी मसीहा दिखते हैं..यदि एक वर्ग धर्म के नाम पर सरकार बनाना चाहता है, तो दूसरा वर्ग धर्म के नाम पर, सरकार में अपनी हिस्सेदारी चाहता है. दोनों के नेता प्रयास करते है युवाओं को बरगलाकर अपना सिपाही बनाने का,यदि एक तरफ तोगड़िया हैं तो दूसरी तरफ ओवेशी हैं..और यह कुछ नया नहीं है इससे पहले भी इतिहास में कई ओवेशी आये और गए पर रहे वही ढाक के तीन पात,क्योंकि बिना आपसी सद्भाव के विकास का सपना बेईमानी है..!!
"कर्म से राष्ट्रभक्त बनो और ह्रदय से मानवतावादी"अक्षय भट्ट