Saturday, December 6, 2008

बारिश की बूंदें


- धनंजय मिश्रा

पत्तियों से लटकी बारिश की बूंदें
और उन पर पड़ती बल्ब की रोशनी रंगीन
नियति और पुरुषार्थ का संगम
प्रकृति और कृत्रिमता का संगम
सुंदर लगते हैं....
प्यारे लगते हैं...
पर डर लगता है
कहीं ये कृत्रिमता प्रकृति पर
और ये पुरुषार्थ नियति पर
हावी ना हो जाए...
कहीं रोशनी के भार से
बारिश की बूदें गिर ना जाएं....

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