Tuesday, May 27, 2008

LONG LIVE MUIR TRADITION, LONG LIVE MUIR SPIRIT!


2002 से 2005 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अमरनाथ झा छात्रावास में रहा। यह छात्रावास कभी म्योर हॉस्टल के नाम से पूरे उत्तर भारत में मशहूर हुआ करत था। इसे आईएएस की फैक्टरी के नाम से जानते थे लोग। उन दिनों जब मैं कई पुराने लोगों से मिला तो लगभग सभी ने अपने छात्र जीवन को याद करके यही कहा कि अरे, उन दिनों तो म्योर हॉस्टल में जाते हुए डर लगता था, और ये महसूस होता था कि इस हॉस्टल में बहुत योग्य लोग रहते हैं। खैर, मैंने साल 2005 में अपने कुछ साथियों-पीयूष त्रिपाठी, राहुल त्रिपाठी, हरीश सिंह की मदद से एक छोटी सी दीवार पत्रिका-म्योरियन नाम से निकाली। सबने बड़ी प्रशंसा की, खूब सराही गई, लोगों को अगले अंक का इंतजार भी रहने लगा। लेकिन अफसोस कि मेरे हॉस्टल से बाहर यहां दिल्ली आने के बाद पत्रिका बंद हो गई।...लेकिन मेरा मोह उससे आज तक नहीं हटा, ठीक उसी तरह जैसे अपने हॉस्टल से नहीं हटा। हॉस्टल में आज भी कई तरह की क्रिएटिव समारोह होते रहते हैं, मैं अपनी नौकरी और दूसरी व्यस्तताओं के चलते नहीं जा पाता...लेकिन बहुत मिस करता हूं...लगता है जैसे मैं उसी परंपरा का एख अंग हूं जिसमें दुष्यंत कुमार, अमृत राय सरीखे लोग आते हैं। ये ब्लॉग उसी पत्रिका का ऑनलाइन संस्करण है, या यूं कहें उसका ब्लॉगीकरण करना पड़ा है। इसमें पूरी दुनिया में फैले म्योरियन्स की रचनाएं आमंत्रित की जाती हैं। उस पत्रिका में काट-छांट होती थी, कई रचनाओं को जगह नहीं मिल पाता था, यहां वो मुश्किलें नहीं हैं। यहां जो लिखो वो छपेगा।..
LONG LIVE MUIR TRADITION, LONG LIVE MUIR SPIRIT!

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