Saturday, July 5, 2008

घर से दूर...बहुत दूर...!










मैं कदम पर कदम बढ़ाता रहा और,
पीछे छूटते मील के पत्थरों की कतारों ने
नहीं होने दिया ये महसूस कि-
घर से बहुत दूर निकल आया हूं,

यहां नई दुनिया के नए लोग हैं जो,
शहर के बीचोबीच सवाल करते हैं कि-
'तुम यहां तक पहुंचे कैसे?'

क्या कहूं?
कहां से दूं जवाब?
जवाब तो मैं छोड़ आया था
अपने घर पर उसी वक्त,
जब मैंने आते समय मां का पैर छुआ था...!

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