Thursday, June 19, 2008

राजू बेट्टा अंडरग्रेजुएट


गजानन दूबे

पापा ने सिलवा दिये चार कोट छः पैन्ट,
'राजू बेट्टा बन गया कॉलेज स्टूडेन्ट।'

कॉलेज स्टूडेन्ट हुए हॉस्टल में भर्ती,
दिन भर खायें चाट-पकौड़े, शाम को चरें बर्फी।

आधा दर्जन ले लिया जीन्स और दो दर्जन टी-शर्ट,
कोट-पैन्ट से होता था, महफिल में इनसल्ट।

सिगरेट पीना सीख लिया और खरीद लिया मोबाइल,
अपनी बॉडी में घोल लिया, रित्तिक टाइप स्टाइल।

पॉलिश, सेविंग, सेंट, चश्मा और तेल जुल्फों में डाला,
बाइक लेकर निकल लिये, लगाकर कमरे में ताला।

फिल्म, यार-दोस्त, महिला मित्रों के शौकीन,
बायें हाथ में लिए मोबाइल, कैफों में खा चाउमीन।

कुछ लोगों ने दिया नसीहत, पढ़ लो कमरे में हो पैक,
सुनी एक ना और हुई फजीहत जब आया कम्पल्सरी बैक।

कम्पल्सरी बैक आया, क्योंकि नम्बर पाये साढ़े एक,
साल भर जो रहे चूसते मिल्क-बादाम और पेस्ट्री केक।

होते रहे दो साल तक, एक क्लास में फेल,
चीटिंग करते पकड़े गये, बन्द हो गये जेल।

प्रॉक्टर साहब कर दिये एक्जाम में उनको रिस्टीकेट,
नेक्स्ट इलेक्शन चुन गये भइया 'कॉलेज प्रेसीडेन्ट'।

(गजानन फिलहाल इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वाणिज्य में शोध कर रहे हैं।)

0 Comments: