अब चूंकि इस परंपरा का जोर है कि सत्ता का सुख आपकी गुणवत्ता पर नहीं बल्कि आपकी सजातीय संख्या पर निर्भर करता है,तो शातिरों के द्वारा धर्म के साथ छेडछाड प्रमुख मुद्दा रहेगा ही, चाहे वह जिन्ना हों या आज के आजम या ईसाई मिशनरियाँ या फिर खुद को हिन्दूओ का संरक्षक बताकर हिन्दूओ की ही लड़कियों पर भद्दी टिप्पणी करने वाले हिन्दू संगठनो के सदस्य हों॥
हमें कुछ ज्यादा नहीं बस इस परंपरा को ही बदलना होगा आखिर औवेशी से लेकर तोगडिया तक को जनाधार भी तो हम ही देते हैं।। भारत का विकास सिर्फ भारतीय कर सकते हैं धर्म के कुत्सित ठेकादार नहीं।स्पष्ट है आज राजनैतिक क्रांति की नही सामाजिक क्रांति की ज्यादा आवश्यकता है॥
हमें कुछ ज्यादा नहीं बस इस परंपरा को ही बदलना होगा आखिर औवेशी से लेकर तोगडिया तक को जनाधार भी तो हम ही देते हैं।। भारत का विकास सिर्फ भारतीय कर सकते हैं धर्म के कुत्सित ठेकादार नहीं।स्पष्ट है आज राजनैतिक क्रांति की नही सामाजिक क्रांति की ज्यादा आवश्यकता है॥
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