Monday, December 29, 2014

धर्म की राजनीति सिर्फ संघ और उसके अनुसांगिक संघठन ही नहीं करते,बल्कि ईसाई और मुस्लिम के स्वघोषित ठेकेदार भी करते हैं...और ये ठेकेदार भी उसी तरह कुटिल और सस्ती लोकप्रियता के भूखे हैं जैसे अन्य कलयुगी मसीहा दिखते हैं..यदि एक वर्ग धर्म के नाम पर सरकार बनाना चाहता है, तो दूसरा वर्ग धर्म के नाम पर, सरकार में अपनी हिस्सेदारी चाहता है. दोनों के नेता प्रयास करते है युवाओं को बरगलाकर अपना सिपाही बनाने का,यदि एक तरफ तोगड़िया हैं तो दूसरी तरफ ओवेशी हैं..और यह कुछ नया नहीं है इससे पहले भी इतिहास में कई ओवेशी आये और गए पर रहे वही ढाक के तीन पात,क्योंकि बिना आपसी सद्भाव के विकास का सपना बेईमानी है..!!
"कर्म से राष्ट्रभक्त बनो और ह्रदय से मानवतावादी"अक्षय भट्ट

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