Thursday, June 19, 2008

अंडरवियर पर ही निकल पड़े अमृत राय

मार्कण्डेय, वरिष्ठ हिन्दी कथाकार
(स्वर्गीय मार्कण्डेय जी ने अमृत राय पर एक संस्मरण लिखा था 'भाई अमृत रायः कुछ यादें', पेश हैं उसकी कुछ बानगी...)
अमृत राय ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के अमरनाथ झा छात्रावास में रहकर एमए किया। शायद आज कई लोगों को लगे कि यह कोई खास बात नहीं है, लेकिन उस समय की परिस्थियों को देखते हुए यह बात सचमुच रेखांकित करने के योग्य है। तब के इलाहाबाद विश्वविद्यालय और एएन झा छात्रावास का नाम देश के संभ्रांत समाज से जुड़ा हुआ था। लोग आईसीएस बनने का सपना लेकर उसमें भर्ती होते थे। अंग्रेजियत का तो वहां बोलबाला था। भाषा ही नहीं वरन् रहन-सहन के विशेष स्तर के कारण उस छात्रावास में बड़े-बड़े अधिकारियों के पुत्र-कलत्र ही स्थान पाते थे, लेकिन अमृत भाई उसमें घुस ही नहीं गये वरन् एक छोटे से अण्डरवियर के ऊपर घुटने तक का नीचा कुर्ता पहनकर हॉस्टल से बाहर सड़क पर चाय पीने भी पहुंचने लगे। बताते हैं कि इस बात को लेकर पहले सख्त विरोध हुआ लेकिन अध्ययन और विशेषतः अंग्रेजी भाषा का सवाल आते ही लोग उनके सामने बगलें झांकने लगते थे। कहते हैं अमृत जी ने 'कैपिटल' को उसी समय बगल में दबाया और कुछ दिनों बाद तो वे लेनिन की पुस्तकें साथ लेकर विभाग भी जाने लगे।....

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