Thursday, June 19, 2008

मजबूरी का नाम महात्मा गांधी !

(लोगों को अक्सर किसी हताशा भरे क्षण में यह कहते हुए सुना जा सकता है-'मजबूरी का नाम महात्मा गांधी'। जिस महान शख्सियत को हम अपना राष्ट्रपिता मानते हैं, बापू कहते हैं, ...सम्मान करते हैं, उन्हीं को मजबूरी का पर्याय बताना कितना गलत है ! 'म्योरियन' का अक्टूबर २००४ अंक गांधी जयन्ती के अवसर पर प्रकाशित हुआ था। इस मौके पर मैंने कुछ प्रबुद्धजनों से ये सवाल किया था कि आखिर क्या वजह है जो महात्मा गांधी के साथ एक बेतुका जुमला जुड़ा हुआ है- 'मजबूरी का नाम महात्मा गांधी'...लोगों के विचार कुछ यूं थे-)




डॉ राजेंद्र कुमार
, साहित्यकार एवं पूर्व विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
''ये मुहावरा गांधीजी का अवमूल्यन करने वाला प्रतीत होता है। गांधीजी ने कभी भी अहिंसा को न तो कायरता का पर्याय माना न मजबूरी का। चूंकि गांधी के आदर्श को व्यवहारिकता के तौर पर नहीं समझा सका। इसलिए जिन लोगों ने वास्तविक रूप में गांधीजी की राह पर चलना चाहा उनको मजबूरी से जोड़कर लोगों ने अपनी समर्थता को छिपा लिया।''

डॉ जेएस माथुर, निदेशक, गांधी अध्ययन संस्थान, इलाहाबाद
'
''ये प्रश्न बिल्कुल बेतुका है। लोग किसी भी उल्टी-सीधी बात को स्लोगन बना लेते हैं, उस पर हमें माथा-पच्ची नहीं करनी चाहिए कि कैसे बना क्यों बना। गांधीजी दृढ़ इच्छाशक्ति और सबल नेतृत्व के स्वामी थे, लोग उनसे बहुत कुछ सीख सकते हैं।''

डॉ एचएस उपाध्याय, अध्यक्ष, दर्शनशास्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
''गांधीजी हिंसा के सहारे इतने बड़े शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य से नहीं लड़ सकते थे। इसीलिए मजबूरी में अहिंसा का सहारा लेना पड़ा। शायद तभी लोग ऐसा कहते हैं।''

डॉ राजाराम यादव, प्राध्यापक भौतिकशास्त्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
''गांधीजी देश का बंटवारा नहीं चाहते थे, पर मजबूरी में उन्हें यह स्वीकार करना पड़ा। शायद इसीलिए मजबूरी का नाम महात्मा गांधी पड़ गया।''

डॉ आईआर सिद्दिकी, प्राध्यापक रसायनशास्त्र, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
''उस समय जनता तत्कालीन सरकार पर आर्थिक या राजनैतिक रूप से दबाव डालने में असमर्थ थी। गांधीजी मजबूर होकर खुद को तकलीफ देना उचित समझते थे। उनकी कार्यप्रणाली यही थी कि अधिक से अधिक कष्ट सहकर विरोध प्रदर्शित किया जाए।''

डॉ अनीता गोपेश, साहित्यकार एवं प्राध्यापक जन्तु विज्ञान, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
''गांधीजी राष्ट्र का विभाजन नहीं चाहते थे फिर भी विभाजन हुआ और वे मजबूर हो अपना शोक प्रकट करते रहे। उनकी इस मजबूरी को ही उनका अवमूल्यन करते हुए लोगों ने उनके नाम के साथ जोड़ दिया, यह सर्वथा अनुचित है।''

डॉ अविनाश त्रिपाठी, व्याख्याता वनस्पति विज्ञान, इलाहाबाद
'' गांधीजी के संबंध में तीन बातें विचारणीय हैं-

  1. वे बहुत कृषकाय शरीर के थे।
  2. उन्होंने प्राय: मजबूरन ही अंग्रेजों से समझौते किये
  3. भारत के विभाजन के मुद्दे पर जिन्ना के हठ के आगे वे मजबूर हो गये।
दूसरे किसी भी शख्स ने कभी मजबूर होकर समझौते नहीं किये, इसीलिए मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहा जाता है...''

(.....इस कड़ी को आप आगे बढ़ा सकते हैं....लिखिए आप क्या सोचते हैं इस मुद्दे पर, क्यों अक्सर लोग कहते हैं 'मजबूरी का नाम महात्मा गांधी !' अपने विचार आप यहां टिप्पणी के रूप में भी दर्ज कर सकते हैं। )

3 Comments:

धनञ्जय मिश्र विप्र said...

nice.........

विकास कुमार 'स्वप्न' said...

varshon se ye prashn mere man me aate jaate uth hi jaata tha aaj ek sanyog se aapka lekh padha. In sabhi tippaniyon ne meri jiggyasa ka samarthan bhi kiya aur use shant bhi kar diya.

Dhanyvaad.

Niraj Pathak said...

महात्मा गाँधी की तस्वीर नोटों पर होती है, और जब आदमी का काम सीधे तरीके से नहीं होता तो वे मजबूरी में गलत तरीका अपनाते हैं और घूस दे कर काम करवाना चाहते हैं और इल्जाम हमारे बापू पर लगता हैं की मजबूरी का नाम महात्मा गाँधी.